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कार्तिक पूर्णिमा आज: उज्जैन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माँ क्षिप्रा में स्नान के साथ करते हैं सिद्धवट पर पिंडदान
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
कार्तिक पूर्णिमा का सनातन धर्म में बहुत बड़ा महत्व है। इस साल यह 15 नवंबर को मनाई जाएगी। इसे “त्रिपुरी पूर्णिमा” भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नाम के एक खतरनाक असुर का वध किया था और उन्हें त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाता है। इसे “गंगा स्नान पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं और स्वास्थ्य एवं समृद्धि में वृद्धि होती है। इस दिन स्नान, दान, दीपदान और पूजा का खास महत्व है। मान्यता है कि इस दिन कृतिका नक्षत्र में शिव शंकर के दर्शन करने से व्यक्ति सात जन्मों तक ज्ञानी और धनवान बनता है।
सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का खास महत्व है। इस दिन को सिख समुदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि गुरु नानक देव जी का जन्म इसी दिन हुआ था। तब से हर साल उनकी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है।
अगर हम इस खास त्योहार को उज्जैन की धार्मिकता से जोड़ें, तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिद्धवट पर पिंडदान करने का एक विशेष महत्व है। जैसे यूपी के कासगंज में गृद्धवट, प्रयागराज में अक्षयवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और नासिक में पंचवट हैं, वैसे ही उज्जैन में सिद्धवट है, जो एक पवित्र स्थल है। यहाँ श्राद्ध पक्ष के अलावा, कार्तिक मास की वैकुंठ चतुर्दशी और पूर्णिमा पर पितरों के लिए पिंडदान और जलदान का प्राचीन महत्व है।
इस दिन मोक्ष दायनी माँ क्षिप्रा की पवित्र नदी में स्नान करना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि सिंहस्थ महापर्व के दौरान स्नान करना। शास्त्रों में लिखा है कि वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर तर्पण करने से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सिद्धवट में लोग तीन तरह की सिद्धि पाने के लिए आते हैं। पहले, पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान और जलदान किया जाता है। दूसरे, संतान की इच्छा रखने वाले लोग यहाँ वृक्ष पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। तीसरे, संपत्ति पाने के लिए लोग वृक्ष पर सूत्र बांधते हैं। यह स्थान कालसर्प दोष निवारण के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। बता दें, कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल यहाँ हजारों श्रद्धालु आते हैं और स्नान दान के साथ शिप्रा में दीप प्रज्वलित करते हैं।